बिंदुखत्ता इंद्रा नगर (लालकुआं) :
एक बार फिर गोला नदी के किनारे लाखों की लागत से दीवार या चैनल तैयार किए गए हैं — पर सवाल वही है: क्या ये वाकई गोला को रोक पाएंगे?
इंद्रा नगर के फर्स्ट और सेकेंड गफ्ता क्षेत्र में हर साल बरसात आते ही लोग डर के साए में जीते हैं। गोला नदी जब रौद्र रूप लेती है, तो वो सिर्फ मिट्टी नहीं बहाती — वो लोगों की नींद, सुरक्षित जीवन का सपना और सरकारी वादों की हकीकत भी बहा ले जाती है।
कुछ साल पहले 9 करोड़ की लागत से बना एक पक्का चैनल नदी के बहाव में बह गया। अब उसी जगह पर फिर लाखों की लागत से नई संरचना खड़ी की गई है — लेकिन ये न तो पक्की है, न ही स्थाई।
सवाल ये है कि ऐसे ही हर बार लाखों करोड़ों रुपए खर्च करके बिना किसी स्थाई समाधान के कार्य किया जाएगा, आखिर बिंदुखत्ता वासियों को गोला से बचाने के लिए स्थाई समाधान क्यों नहीं ढूंढा जा रहा है, क्यों बार बार गोला में रूपये खर्च करके ठेकेदारों का पेट भरा जा रहा है, क्यों रूपये का दुरूपयोग किया जा रहा है ये सारे सवाल आज इस चैनल के बनने सी खड़े होने लगे हैं।
प्रशासन की भूमिका पर उठते सवाल:
क्या परियोजनाओं की गुणवत्ता की कोई निगरानी नहीं होती?
क्या जनता का पैसा सिर्फ दिखावटी निर्माण में बहाया जा रहा है?
जब बार-बार चैनल बह जाते हैं तो फिर वैकल्पिक और टिकाऊ समाधान क्यों नहीं तलाशे जा रहे?
स्थाई समाधान की ज़रूरत:
इंद्रा नगर और आसपास के क्षेत्रों को हर साल इस आपदा से जूझना पड़ता है। जब तक ठोस, तकनीकी रूप से मजबूत और दीर्घकालिक योजनाएं नहीं बनाई जातीं, तब तक इस समस्या का कोई अंत नहीं है। प्रशासन को चाहिए कि वो इन निर्माण कार्यों की निष्पक्ष जांच करवाए और विशेषज्ञों की सलाह से टिकाऊ समाधान पर कार्य करे।
वरना हर बरसात में करोड़ों के प्रोजेक्ट पानी में बहते रहेंगे और जनता डर के साए में जीने को मजबूर होती रहेगी
