”

इस कहावत को सच कर दिखाया है उत्तराखंड के गौरव बहुगुणा ने, जिन्होंने 10 साल की मेहनत, असफलताओं और समाज की उपेक्षा के बाद आखिरकार LT सहायक अध्यापक के रूप में अपनी मंज़िल पा ली।
हर एग्जाम में किया संघर्ष, फिर भी नहीं मानी हार
गौरव बहुगुणा ने पिछले एक दशक में Group C सहित कई प्रतियोगी परीक्षाएँ दीं। हर बार थोड़े से अंकों से बाहर रह जाना, रिजल्ट आने पर निराशा, और फिर दोबारा हिम्मत जुटाकर पढ़ाई शुरू करना — यही उनकी ज़िंदगी का सिलसिला बन गया था।
कई बार हालात ऐसे बने कि लोग उन्हें “बेकार लड़का” कहने लगे। दोस्तों के ताने, रिश्तेदारों के सवाल, और समाज की बातें सब झेलीं, लेकिन गौरव ने ठान रखा था — “अबकी बार हार नहीं मानूंगा।”
दोस्तों के ताने से लेकर मुख्यमंत्री से ज्वाइनिंग लेटर तक
गौरव के दोस्तों तक ने चिढ़ाते हुए कहा — “अरे, तू कब तक पढ़ेगा? अब छोड़ दे ये सब!”
लेकिन आज वही दोस्त उनकी सफलता की कहानी सुनाते नहीं थक रहे हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद गौरव बहुगुणा को LT सहायक अध्यापक पद का ज्वाइनिंग लेटर सौंपा, और वो क्षण उनके जीवन का सबसे भावनात्मक पल बन गया।
उनकी आँखों में आँसू थे, लेकिन इस बार ये आँसू दर्द के नहीं, जीत के थे।
जिसे कभी लोग मज़ाक में लेते थे, आज वही गंगोलीहाट के सरकारी स्कूल में भविष्य की पीढ़ियों को शिक्षा देने जा रहे हैं।
संघर्ष की कहानी जो युवाओं को सिखाती है धैर्य और विश्वास
गौरव की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की सफलता नहीं, बल्कि हर उस नौजवान की प्रेरणा है जो प्रतियोगी परीक्षाओं की दौड़ में बार-बार असफल होकर भी कोशिश जारी रखता है।
उन्होंने दिखाया कि हार असफलता नहीं होती, हार तो तब होती है जब हम कोशिश करना छोड़ दें।
गौरव कहते हैं —
> “हर बार जब मैं असफल होता था, मैं खुद से कहता था – अभी नहीं तो अगली बार। और शायद यही जिद मुझे यहाँ तक लाई।”
आज गौरव बहुगुणा न सिर्फ एक शिक्षक बने हैं, बल्कि संघर्ष और आत्मविश्वास का प्रतीक भी बन गए हैं।












Users Today : 14