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“क्या यही है गोला नदी का स्थाई समाधान? पहली बारिश में टूट गया था चैनल”

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क्या यही है गोला नदी को रोकने वाला चैनल? — मिट्टी और कंकड़ से बनी यह अस्थायी संरचना बारिश में बहने को मजबूर,
क्या यही है गोला का समाधान? मिट्टी और कंकड़ से बनाया गया यह कथित चैनल पहली बारिश में बह गया — बिंदुखत्ता के लोगों की ज़िंदगी फिर से खतरे में, लेकिन जिम्मेदार अब भी चुप हैं।”

क्या इस मिट्टी के ढेर को कहते हैं ‘चैनल’?

 

गोला की तबाही रोकने का ये मज़ाक कब तक चलेगा?

 

यह तस्वीर बिंदुखत्ता की है। और सामने जो दिखाई दे रहा है — वो है वन विभाग द्वारा बनाया गया ‘चैनल’।

 

हां, सरकार कहती है कि हमने गोला नदी को काबू करने के लिए चैनल बनाया।

 

लेकिन ये क्या है?

मिट्टी, कंकड़, और बजरी का एक छोटा-सा ऊँचा टीला

 

क्या यही वो रक्षक है, जो हर साल उफनती गोला नदी को रोक पाएगा?

क्या डीएम महोदय को इस ‘चैनल’ की समीक्षा नहीं करनी चाहिए? आखिर लाखों रुपये खर्च कर बना ये ढांचा अगर पहली बारिश में बह गया, तो जिम्मेदारी किसकी होगी?”

 

 

🌊 गोला की ताकत को जानते हैं हम…

 

बिंदुखत्ता का हर निवासी जानता है कि जब बारिश होती है, तो गोला नदी सिर्फ बहती नहीं — लहरें काट देती हैं, रास्ते निगल जाती हैं, ज़मीन तोड़ डालती हैं।

 

और उसके आगे ये चैनल क्या करेगा?

ताश के पत्तों की तरह बह जाएगा।

जैसे हर साल होता है।

 

ये जो “चैनल” बना है, क्या कोई तकनीकी परीक्षण हुआ?

 

क्या इसके लिए कोई DPR (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) तैयार की गई थी?

 

क्या वन विभाग ने इसे बनाने से पहले कोई विशेषज्ञ सलाह ली थी?

 

और सबसे अहम — क्या इस निर्माण के बाद इसकी कोई गुणवत्ता जांच हुई?

 

अगर जवाब “नहीं” है —

तो यह सिर्फ एक कागज़ी खानापूर्ति है, और लाखों रुपये की सरासर बर्बादी।

 

 

❗ ये समाधान नहीं, एक धोखा है!

 

इस प्रकार के ढीले-ढाले चैनल गोला को रोक नहीं सकते, बल्कि जनता को झूठा सुकून देकर धोखा देते हैं।

 

बिंदुखत्ता के लोग नासमझ नहीं हैं। हम ये भी समझते हैं कि जब गोला बहती है, तो किस हद तक नुकसान करती है। और हम ये भी देख रहे हैं कि जो निर्माण हो रहा है, वह मिट्टी और कंकड़ से, बिना किसी कंक्रीट या इंजीनियरिंग संरचना के किया गया है।

 

 

ग्रामवासी चाहते हैं —

 

1. वन विभाग तुरंत इस “चैनल निर्माण” की गुणवत्ता जांच करवाए।

 

2. निर्माण कार्य की DPR, टेंडर, फंड आवंटन और व्यय रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।

 

3. एक स्वतंत्र तकनीकी टीम (जैसे IIT या PWD के इंजीनियर) से इस कार्य का मूल्यांकन कराया जाए।

 

4. जनता को जवाब दिया जाए कि क्या यह चैनल वास्तव में गोला को नियंत्रित करने में सक्षम है या ये आम जनता के रूपयों की बर्बादी है

 

 

🔥 अब बिंदुखत्ता की आवाज़ दबेगी नहीं

 

बिंदुखत्ता के लोग अब सिर्फ देखेंगे नहीं —

अब सवाल पूछेंगे,

अब फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करेंगे,

और अब सरकार की जवाबदेही तय कराई जाएगी।

 

क्योंकि हम जानते हैं —

जब तक बोलोगे नहीं, तब तक बहोगे।

 

हम किसी नेता को दोष नहीं दे रहे हैं हम सरकार और शासन प्रशासन से सवाल कर रहे हैं आखिर क्यों स्थाई समाधान नहीं किया जा रहा है , अगर ऐसा ही रहा तो लाखों करोड़ों की जमीन, मकान गोला में समा जाएगी, और फिर अफसोस होगा कि हम उस समय आवाज उठा सकते हैं, हम इस मुद्दे को बार बार उठा कर सरकार पर दबाव बना सकते थे, आज हम सबको आवाज उठानी चाहिए, हमको ये नहीं सोचना चाहिए कि उसका घर नजदीक है तो मुझे क्या करना है, ये लड़ाई सबकी है किसी एक की नहीं, आज अगर आप हमारे लिए नहीं बोलोगे तो कल आपके लिए भी कोई बोलने वाला नहीं होगा, हमको ये नहीं सोचना कि मेरे घर में नेता जी ने रोड बनाई है, हमारे घर में हैंडपंप लगाया है , हमारे घरों में लैटरिंग बनाई है ,मैं चुप रहता हूं, इन सब से ऊपर उठना पड़ेगा,

मैं भी कब तक अकेले ये आवाज उठाऊंगा, आपको भी अपने तरीके से आवाज उठानी पड़ेगी,

 

📸 यह तस्वीर गवाही है उस सच्चाई की, जिसे सरकार छुपा रही है। आप खुद देखिए और फैसला कीजिए — क्या गोला नदी के सामने ये “चैनल” एक मज़ाक नहीं है? क्या ये रुपयों की बर्बादी नहीं है।

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